आइए आज हम बात करते हैं उन महान व्यक्तियों की जिन्होंने विशेष शिक्षा में अपना योगदान दिया।
Jean M.G. Itard : विशेष शिक्षा की शुरुआत करने वाले प्रथम व्यक्ति थे। इन्होंने 11 वर्ष के एक जंगली लड़के, जिसका नाम इन्होंने विक्टर रखा था और उसको प्रशिक्षित किया। इस प्रशिक्षण का परिणाम यह हुआ कि वह लड़का सामान्य तो नहीं बन सका परंतु प्रशिक्षण के माध्यम से बालक के व्यवहार में बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ।
लुइस ब्रेल: लुइस ब्रेल स्वयं नेत्रहीन थे। इन्होंने नेत्रहीन व्यक्तियों के पढ़ने लिखने के लिए एक क्रांतिकारी प्रणाली विकसित की, जिसे आज हम सभी ब्रेल लिपि के नाम से जानते हैं। वर्तमान में नेत्रहीन व्यक्तियों की शिक्षा ब्रेल लिपि के माध्यम से करवाई जाती हैं और उनके पढ़ने लिखने के लिए इसे सबसे उपयुक्त विधि के रूप में माना जाता है।
हेलन ए केलर: हेलेन केलर वह प्रथम महिला थी जिन्होंने गूंगी बहरी व दृष्टिहीन होने के बावजूद स्नातक की उपाधि प्राप्त की और इन्होंने स्पर्श विधि द्वारा सांकेतिक भाषा का प्रयोग किया।
मारिया मांटेसरी: मारिया मांटेसरी ने इंद्रिय प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया है इन्होंने शोध द्वारा यह सिद्ध किया कि बालक अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में बहुत कुछ सीखता है मांटेसरी ने विशेष शिक्षा व विशेष शिक्षण सामग्री में अपने मूर्त अनुभव का प्रयोग कर शिक्षा के क्षेत्र में एक अच्छा बदलाव किया।
अल्फ्रेड बिने: इन्होंने सर्वप्रथम बताया था कि बुद्धि को मापा जा सकता है और इसमें शिक्षा के माध्यम से ही एक अच्छा विकास किया जा सकता है ।

भारत में बौद्धिक अक्षमता का ऐतिहासिक समीक्षा:- बौद्धिक अक्षमता का सर्वप्रथम वर्णन हमें अथर्ववेद में देखने को मिलता है।
- दर्शन की सबसे पुरानी शाखा में से 17 के दर्शन में बौद्धिक अक्षमता के विभिन्न प्रकारों की बात की गई है।
- गरबा उपनिषद 1000 ईसवी पूर्व जिसमें भ्रूण विज्ञान संबंधी वर्णन है, और उससे पता चलता है कि जिस माता पिता का दिमाग अस्वस्थ है उनकी संतान भी दोषपूर्ण पैदा होगी।
- पंतजलि की पैराणिक कथाओं में हमें यह पढ़ने को मिलता है कि पतंजलि ने गोंडापाध्याय नाम के व्यक्ति को शिक्षित किया था जो कि एक मंदबुद्धि वाला व्यक्ति था ।
- पंतजलि योग सूत्र एक चिकित्सा के रूप में योग के बारे में जानकारी प्रदान करता है । इन सूत्रों को ध्यानपूर्वक पड़ने पर यह उजागर हुआ कि इस चिकित्सा में बौद्धिक अक्षमता वाले व्यक्तियों की चिकित्सा भी शामिल है।
- महान चिकित्सक चरक ने बौद्धिक अक्षमता के विभिन्न कारण बताये और इसके विभिन्न प्रकारों एवं वर्गीकरण के बारे में चर्चा की।
- Eryanar & Avvaiyar द्वारा संगम साहित्य (200 BC से 200AD तक) में बौद्धिक अक्षमता वाले लोगों का साफ संदर्भ देखने को मिलता है।
- मनु के अनुसार विधान निर्माता अर्थात भगवान ने कुछ लोगों को उनके पूर्व अपराधों के परिणाम के रूप में बौद्धिक अक्षम, गूंगा, अंधा, बहरा और सभी विकृतियों से तिरस्कृत किया है।
अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि एवं बोध:
- प्रागैतिहासिक काल में अक्षम रूप से जन्म लिए बच्चों को जान से मार दिया जाता था।
- 12वीं शताब्दी में इंग्लैंड के राजा हेनरी द्वितीय ने इसके लिए अलग एक कानून बनाया तथा समाज से अलग रखने का प्रावधान किया।
- 16 वी शताब्दी के उत्तरार्ध में पोप ग्रेगरी ने अपने धर्म प्रदेश के अनुसार अपने धर्म अनुयायियों को दिव्यांगों की सेवा करने का उपदेश दिया। यही वह समय था जब ग्रीस में इन्हें ईडियट के नाम से पुकारा जाता था।
- मध्यकालीन इतिहास में इन्हें बुरी आत्मा का प्रकोप इत्यादि कहकर बाहर कर दिया जाता था।
- ईसाई धर्म अनुयायियों ने इनकी सेवा हेतु अनाथालय की व्यवस्था की इसके तहत लोगों का दृष्टिकोण में बहुत बदलाव हुआ ।
- 18 वीं शताब्दी के अंत में रूसो लॉक ने दिव्यांगों के लिए इलाज का प्रारंभ किया।
- दिव्यांगों के लिए व्यवस्थित सुचारू ढंग से प्रशिक्षण का कार्य Jean Marc Gaspard Itard ने इसी काल में प्रारंभ किया।
Jean Marc Gaspard Itard (1774-1838)- Jean Marc Gaspard Itard को फ्रांस में पेरिस के निकट एक 11 वर्षीय बालक मिला जो बोल नहीं पाता था लोगों को चोटिल करता एवं उसकी प्रवृत्ति पशु जैसी थी। उसके शरीर पर खरोंच के निशान थे उसे पेरिस लाया और उसे खाना खाना, पानी पीना कपड़े पहनना नहाना धोना अपनी जरूरत की रोजमर्रा की दिनचर्या के बारे में और पढ़ाई लिखाई सिखाना प्रारंभ किया। उस बच्चे को सब कुछ सिखाने में बहुत ज्यादा सफलता हासिल नहीं हुई परंतु इससे पेरिस में श्रवण दोष, दृष्टि दोष, मानसिक अक्षमता एवं पिछड़े बालकों के लिए शिक्षा की शुरुआत की गई। इसके साथ-साथ उनकी शिक्षा में व्यक्तिगत शिक्षण तथा शिक्षक एवं अभ्यार्थी के बीच संबंध इत्यादि को मान्यता मिली ।
- 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बौद्धिक अक्षमताओं की शिक्षा के लिए प्रचलित पुस्तक Idiocy its treatment by Psychological method नामक पुस्तक की रचना 1866 में हुई ।
- सेंग्विन तथा मार्क के कार्यों ने एवं मोंटेसरी ने विशेष तौर पर विशेष शिक्षा के माध्यम से अक्षम बच्चों के लिए कार्य किया।
- इस समय अक्षम बच्चों के लिए फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और यूरोप में व्यक्तिगत तौर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी थी। इसी बीच प्रथम विश्व युद्ध में अमेरिका ने बुद्धि लब्धि की जांच प्रारंभ की।
- इस समय ग्रीस और रोम में दिव्यांग बच्चों को जीवित नहीं रखा जाता था। इसका कारण यह था कि दिव्यांग युद्ध नहीं कर सकते थे |
- 1784 में विलीन टाइनिलिंग ने पेरिस में दृष्टिबाधितों के लिए प्रथम विद्यालय की स्थापना की।
- 1816-1863 में आवासी रूप से दिव्यांगों के लिए आवासीय व्यवस्था होहान ग्रबिन ने प्रारंभ की। इसके बाद बौद्धिक अक्षमता के क्षेत्र में वैज्ञानिक अध्ययन होना शुरू हुआ और AAMD की स्थापना की गई।
- 1870 में दिव्यांगों की शिक्षा के प्रति रुचि ना होना दिव्यांगों का विद्यालय आने जाने में असुविधा शिक्षा का खराब व्यवहार सामने आया।
- 1880 में इन्हीं सब के परिणाम स्वरूप विभिन्न प्रकार के दिव्यांगों के लिए विशिष्ट कक्षा का प्रारंभ किया गया और इसका परिणाम अच्छा देखने को मिला।
- 1885 में रॉयल कमीशन एक्ट बना जिसमें दृष्टिबाधितों एवं मूक बधिरों के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए।
- 1893 में दिव्यांगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रावधान किया गया।
- 1913 में रॉयल कमीशन एक्ट मेंटली डेफिसेसी बिल MDB नाम से पारित किया गया।
- 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम स्वरूप दिव्यांग बच्चों की शिक्षा एवं प्रशिक्षण का कार्य प्रारंभ किया गया।
- 1905 में अल्फार्ड बिने तथा साइमन ने बुद्धि परीक्षण बनाया इस प्रकार से 19वीं शताब्दी में दिव्यांगों के लिए काफी कार्य किए गए।
- 19वीं शताब्दी के अंत तक विशेष विद्यालयों की परंपरा चल रही थी
- बीसवीं शताब्दी में जो बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चे स्कूल नहीं जाते थे उनके लिए विद्यालय में जाने की व्यवस्था की गई। दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए भी विद्यालय एवं आवासी व्यवस्था की गई।
- बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अमेरिका में सांकेतिक शिक्षा का प्रयोग प्रारंभ हुआ ।
- 1950 में UNESCO ने ब्रेल लिपि के बारे में बताया था। अमेरिका में विशेष समस्या वाले बच्चों के लिए विशेष राष्ट्रीय नीति बनी थी।
- 1959 मैं ब्रिटेन में मेंटल हेल्थ एक्ट बनाकर दिव्यांगों की सुरक्षा पर जोर दिया गया।
- 1960 से 1970 इसे विशेष शिक्षा का युग कहा जाता है और बीसवीं शताब्दी में ही दिव्यांगता को स्वीकारने के लिए व्यक्तियों के दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन हुआ तथा सरकार की तरफ से सकारात्मक संवैधानिक कार्यक्रम संचालित किए गए।
- 1951 मैं दृष्टिबाधिता के क्षेत्र में राष्ट्र संघ की स्थापना मुंबई में की गई थी। इसका क्षेत्र दृष्टि बांधता की रोकथाम एवं लोगों को जागरूक करने का था।
- 1960 में दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए ग्रामीण एवं कृषि के लिए केंद्रों की स्थापना की गई। यह प्रशिक्षण केंद्र Tata Agriculture Rubik training centre के नाम से जाना जाता था यह विद्यालय दृष्टि बाधित व्यक्तियों के लिए है जो भुवनेश्वर में स्थित है।
- 1963 में दृष्टिबाधित विद्यालय की स्थापना शाहदरा नई दिल्ली में की गई।
- The federation for the welfare of mentally retarded की स्थापना 1965 में की गई इसका उद्देश्य बौद्धिक अक्षमता वाले व्यक्तियों की विभिन्न प्रकार की सेवा करने के लिए संसाधन जुटाना तथा दृष्टिबाधित व्यक्तियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना होता है।
- 1970 में प्रमुख उपलब्धियां प्राप्त हुई और संशोधन द्वारा Education for all Handicapped children Act पास हुआ
- Individual with Disability Act 1996.
- इस कानून में निम्न बातों का समावेश किया गया
- इसमें बताया गया की व्यक्ति को महत्व देना ना कि उसकी अक्षमता को।
- 14 से 16 वर्ष के प्रत्येक बड़े बच्चे के लिए व्यवसाय प्रशिक्षण देना।
- American Association Disability Act 1990 ने अक्षम व्यक्तियों के नागरिक अधिकार संबंधी कानूनों पर ध्यान केंद्रित किया और इसके अतिरिक्त सभी व्यापक कार्यों में भेदभाव की भावना को समाप्त किया।
- उसी समय के आसपास पेरिस में 1975 ईस्वी में सर्वप्रथम पहले पब्लिक स्कूल की स्थापना की गई जिसमें सांकेतिक भाषा का प्रयोग किया गया 1977 में लूडस वैली मेमोरियल अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई 1984 में भारत सरकार ने बौद्धिक अशक्तता वाले बच्चों के लिए शिक्षण प्रशिक्षण हेतु शिक्षण सामग्री तथा संसाधन जुटाने के लिए एनआई एम एच की स्थापना की ।कार्यक्रम की गुणवत्ता का नियंत्रण रखने एवं अन्य संगठनों के नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने 1985 ईस्वी में भारतीय पुनर्वास परिषद आर सी आई का गठन किया कुछ समय बाद 1997 में राष्ट्रीय प्रतिदर्श संगठन सर्वेक्षण द्वारा यह स्पष्ट हुआ कि लगभग एक लाख दिव्यांग गामक अक्षमता प्रभावित है अतः स्पष्ट है कि बौद्धिक अक्षम बच्चों की प्रशिक्षण और शिक्षा के क्षेत्र में लगातार वृद्धि हो रही है।
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